Cart updating

ShopsvgYour cart is currently is empty. You could visit our shop and start shopping.

Loading

Narsinh Mehta Jayanti 21 Dec

svgDecember 19, 2023DecemberBlogIndian Festival

Narsinh Mehta Jayanti is celebrated in fond remembrance of Narsinh Mehta (Narsi Bhagat), the great Gujarati saint-poet who lived between 1414 and 1481. His lifetime is varied considered as 1409-1488 by some historians.

नरसी मेहता अथवा नरसिंह मेहता (अंग्रेज़ी:Narsinh Mehta) (जन्म 1414 ई. जूनागढ़) गुजराती भक्ति साहित्य के श्रेष्ठतम कवि थे। उनके कृतित्व और व्यक्तित्व की महत्ता के अनुरूप साहित्य के इतिहास ग्रंथों में “नरसिंह-मीरा-युग” नाम से एक स्वतंत्र काव्य काल का निर्धारण किया गया है, जिसकी मुख्य विशेषता भावप्रवण कृष्ण की भक्ति से अनुप्रेरित पदों का निर्माण है। पदप्रणेता के रूप में गुजराती साहित्य में नरसी का लगभग वही स्थान है जो हिन्दी में महाकवि सूरदास का है।

जीवन परिचय – Narsinh Mehta Jayanti

गुजराती साहित्य के आदि कवि संत नरसी मेहता का जन्म 1414 ई. में जूनागढ़ (सौराष्ट्र) के निकट, तलाजा ग्राम में एक नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। माता-पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था। इसलिए अपने चचेरे भाई के साथ रहते थे। अधिकतर संतों की मंडलियों के साथ घूमा करते थे और 15-16 वर्ष की उम्र में उनका विवाह हो गया। कोई काम न करने पर भाभी उन पर बहुत कटाक्ष करती थी। एक दिन उसकी फटकार से व्यथित नरसिंह गोपेश्वर के शिव मंदिर में जाकर तपस्या करने लगे। मान्यता है कि सात दिन के बाद उन्हें शिव के दर्शन हुए और उन्होंने कृष्णभक्ति और रासलीला के दर्शनों का वरदान मांगा। इस पर द्वारका जाकर रासलीला के दर्शन हो गए। अब नरसिंह का जीवन पूरी तरह से बदल गया। भाई का घर छोड़कर वे जूनागढ़ में अलग रहने लगे। उनका निवास स्थान आज भी ‘नरसिंह मेहता का चौरा’ के नाम से प्रसिद्ध है। वे हर समय कृष्णभक्ति में तल्लीन रहते थे। उनके लिए सब बराबर थे। छुआ-छूत वे नहीं मानते थे और हरिजनों की बस्ती में जाकर उनके साथ कीर्तन किया करते थे। इससे बिरादरी ने उनका बहिष्कार तक कर दिया, पर वे अपने मत डिगे नहीं। पिता के श्राद्ध के समय और विवाहित पुत्री के ससुराल उसकी गर्भावस्था में सामग्री भेजते समय भी उन्हें दैवी सफलता मिली थी। जब उनके पुत्र का विवाह बड़े नगर के राजा के वजीर की पुत्री के साथ तय हो गया। तब भी नरसिंह मेहता ने द्वारका जाकर प्रभु को बारात में चलने का निमंत्रण दिया। प्रभु श्यामल शाह सेठ के रूप में बारात में गए और ‘निर्धन’ नरसिंह के बेटे की बारात के ठाठ देखकर लोग चकित रह गए। हरिजनों के साथ उनके संपर्क की बात सुनकर जब जूनागढ़ के राजा ने उनकी परीक्षा लेनी चाही तो कीर्तन में लीन मेहता के गले में अंतरिक्ष से फूलों की माला पड़ गई थी। निर्धनता के अतिरिक्त उन्हें अपने जीवन में पत्नी और पुत्र की मृत्यु का वियोग भी झेलना पड़ा था। पर उन्होंने अपने योगक्षेम का पूरा भार अपने इष्ट श्रीकृष्ण पर डाल दिया था। जिस नागर समाज ने उन्हें बहिष्कृत किया था अंत में उसी ने उन्हें अपना रत्न माना और आज भी गुजरात में उनकी वह मान्यता है।[1]

रचनाएँ

नरसिंह मेहता ने बड़े मर्मस्पर्शी भजनों की रचना की। गांधी जी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेणे कहिये’ उन्हीं का रचा हुआ है। भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के पदों के अतिरिक्त उनकी यह कृतियां प्रसिद्ध हैं[1]-

‘सुदामा चरित’
‘गोविन्द गमन’
‘दानलीला’,
‘चातुरियो’
‘सुरत संग्राम’
‘राससहस्त्र पदी’
‘श्रृंगार माला’
‘वंसतनापदो’
‘कृष्ण जन्मना पदो’

Download Images

Narsinh Mehta Jayanti
narshi mehta jayanti 2 Narsinh Mehta Jayanti

Loading

Indian Festival

Indian Festival Image Free - Download the BEST Free Download the perfect Indian festival pictures. Find over 100+ of the best free Indian festival images.

svg

What do you think?

Show comments / Leave a comment

Leave a reply

svg
Quick Navigation
  • 01

    Narsinh Mehta Jayanti 21 Dec