साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र (लेखक) का जीवन परिचय Bhartendu Harishchandra Biography, Poems, Books, Death In Hindi
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भारतेंदु हरिश्चंद्र भारतीय आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक कहे जाते है. बहुमुखी प्रतिभा के धनी भारतेंदु जी ने साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में मौलिक एवं युगान्तकारी परिवर्तन किए तथा हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी. वे हिन्दी साहित्य में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे. इनका मूल नाम हरिश्चंद्र था बाद में इन्हें ‘भारतेंदु’ की उपाधि दी गई थी. इनके जन्म एवं कार्यकाल के समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था. इन्होंने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण के चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया. . हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में इनका बहुमूल्य योगदान रहा. हिंदी में नाटकों का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से ही माना जाता है. इन्होंने हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया.
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय
Bhartendu Harishchandra Biography in Hindi
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | हरिश्चंद्र |
जन्म (Date of Birth) | 9 सितम्बर 1850 |
आयु | 35 वर्ष |
जन्म स्थान (Birth Place) | वाराणसी, उत्तरप्रदेश |
पिता का नाम (Father Name) | बाबू गोपाल चन्द्र |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
कार्य क्षेत्र | रचनाकार, साहित्यकार, पत्रकार |
कर्म भूमि | वाराणसी |
विषय | आधुनिक हिंदी साहित्य |
मृत्यु (Death) | 6 जनवरी 1885 |
मृत्यु स्थान (Death Place) | —- |
भाई-बहन (Siblings) | एक भाई |
उपाधि | “भारतेंदु” |
प्रारंभिक जीवन एवं परिवार
आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितम्बर 1850 में काशी के वैश्य परिवार में हुआ. इनके पिता बाबू गोपाल चन्द्र भी एक कवि थे. लेकिन बाल्यावस्था में ही माता-पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनका बचपन माता-पिता के वात्सल्य से वंचित रहा. भारतेन्दु जी ने पॉंच वर्ष की अल्पायु में ही काव्य रचना कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था. उन्होंने आपने घर पर ही स्वाध्याय से हिन्दी, अँग्रेजी, संस्कृत, फारसी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं का उच्च ज्ञान प्राप्त कर लिया. उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा क्वीन्स कॉलेज, बनारस से प्राप्त की. मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह हुआ. भारतेंदु जी स्वभाव से बहुत उदार थे. उन्होंने देश सेवा, दीन दुखियों की आर्थिक सहायता, साहित्य सेवा एवं गरीबो में अपना धन लुटा दिया. जिसके परिणाम स्वरूप वे ऋणी हो गए और इस चिंता के कारण उनकी 35 वर्ष की अल्पायु में ही मृत्यु हो गई.
भारतेंदु हरिश्चंद्र की साहित्यिक कृतियाँ
भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के साहित्यिक योगदान के कारण हिंदी साहित्य में 1857 से 1900 तक के काल को “भारतेंदु युग” के नाम से जाना जाता है. उन्होंने मात्र 5 वर्ष की आयु में निम्न काव्य दोहे की रचना कर अपने महान कवि होने का परिचय दिया था-
महाकवि भारतेंदु जी की यह विशेषता रही है कि उन्होंने ईश्वर भक्ति एवं प्राचीन विषयों पर काव्य लिखने के साथ उन्होंने समाज सुधार, देश प्रेम एवं देश की स्वतंत्रता जैसे नवीन विषयों पर भी कविताएं लिखी. उनके साहित्य और नवीन विचारों ने उस समय के समस्त साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों को आकर्षित किया और उनके इर्द-गिर्द राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत लेखकों का एक ऐसा समूह बन गया जिसे भारतेन्दु मंडल के नाम से जाना जाता है.
भारतेन्दु जी ने प्रमुख रूप से हिन्दी नाट्य रचनाएं, निबन्ध, काव्य रचना एवं उपन्यास की रचना की. उनके द्वारा रचित रचनाएं निम्नांकित है-
मौलिक नाटक–
- वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति
- सत्य हरिश्चन्द्र
- श्री चंद्रावली
- विषस्य विषमौषधम्
- भारत दुर्दशा
- नीलदेवी
- अंधेर नगरी
- प्रेमजोगिनी
- सती प्रताप (1883, अपूर्ण, केवल चार दृश्य, गीतिरूपक, बाबू राधाकृष्णदास ने पूर्ण किया)
निबंध संग्रह–
- नाटक
- कालचक्र (जर्नल)
- लेवी प्राण लेवी
- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?
- कश्मीर कुसुम
- जातीय संगीत
- संगीत सार
- हिंदी भाषा
- स्वर्ग में विचार सभा
काव्यकृतियां
- भक्तसर्वस्व
- प्रेममालिका
- प्रेम माधुरी
- प्रेम-तरंग
- उत्तरार्द्ध भक्तमाल
- प्रेम-प्रलाप
- होली
- मधु मुकुल
- राग-संग्रह
- वर्षा-विनोद
- विनय प्रेम पचासा
- फूलों का गुच्छा- खड़ीबोली काव्य
- प्रेम फुलवारी
- कृष्णचरित्र
- दानलीला
- तन्मय लीला
- नये ज़माने की मुकरी
- सुमनांजलि
- बन्दर सभा (हास्य व्यंग)
- बकरी विलाप (हास्य व्यंग)
कहानी
- अद्भुत अपूर्व स्वप्न
यात्रा वृत्तान्त–
- सरयूपार की यात्रा
- लखनऊ
- आत्मकथा
- एक कहानी- कुछ आपबीती, कुछ जगबीती
उपन्यास
- पूर्णप्रकाश
- चन्द्रप्रभा
संपादकीय एवं पत्रकार भारतेंदु हरिश्चंद्र
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने काव्य रचना के साथ पत्रकरिता भी की. इन्होंने कई पत्रिकाओं के संपादन किए. उन्होंने 18 वर्ष की आयु में ‘कविवचनसुधा’ नामक पत्रिका निकाली जिसमें उस समय के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं छपती थी. इसके बाद उन्होंने 1873 में ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ और 1874 में स्त्री शिक्षा के लिए ‘बाला बोधिनी’ नामक पत्रिकाएँ निकालीं. इसके साथ ही उनके समांतर साहित्यिक संस्थाएँ भी खड़ी कीं. इसके अंतर्गत उन्होंने ‘तदीय समाज’ की स्थापना वैष्णव भक्ति के प्रचार के लिए की. उन्होंने देश भाषा तथा साहित्य दोनों ही क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किया. स्वतंत्रता आंदोलन के समय भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने अंग्रेजी शासन का विरोध करते हुए देश सेवा के कार्य किये और वे काफी लोकप्रिय भी हुए. उनकी लोकप्रियता से प्रभावित होकर काशी के विद्वानों ने 1880 में उन्हें ‘भारतेंदु'(भारत का चंद्रमा) की उपाधि प्रदान की.
मृत्यु (Bhartendu Harishchandra Death)
शरीर के अस्वस्थ होने एवं दुश्चिंताओं के कारण मात्र 35 वर्ष की अल्पायु में 6 जनवरी1885 को भारतेंदु हरिश्चंद्र का निधन हो गया.
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