रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय || Ramkrishna Paramhans Biography in Hindi –
रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय - Ramkrishna Paramhans
वास्तविक नाम | गदाधर चट्टोपाध्याय |
अन्य नाम | रामकृष्ण परमहंस |
व्यवसाय | संत, विचारक |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 18 फ़रवरी 1836 |
जन्मस्थान | कामारपुकुर, बंगाल |
मृत्यु तिथि | 16 अगस्त 1886 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता, भारत |
आयु (मृत्यु के समय) | 50 वर्ष |
मृत्यु कारण | गले के कैंसर |
राशि | कुंभ |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
जाति | बंगाली ब्राह्मण |
परिवार | पिता – खुदीराम माता – चन्द्रमणिदेवी भाई – रामकुमार चट्टोपाध्याय बहन – कोई नहीं |
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पत्नी | शारदामणि मुखोपाध्याय |
बच्चे | ज्ञात नहीं |
मानवीय मूल्यों के पोषक रामकृष्ण परमहंस (ramkrishna paramhans) भारत के एक महान और प्रसिद्ध संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। स्वामी रामकृष्ण जी ने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें अपने बचपन से ही यह विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन अपने जीवन काल में किये जा सकते है अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन व्यतीत किया । स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी (ramkrishna paramhans) मानवता के पुजारी थे। अपनी साधना के फलस्वरूप उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि संसार के सभी धर्म सच्चे हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं हैं । धर्म तो बस ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न साधन/ माध्यम मात्र हैं।उन्होंने मानव सेवा को ही अपने जीवन का सबसे बड़ा धर्म समझा। इसी कारण उन्होंने लोगों से हमेशा एकजुट रहने और सभी धर्मों का सम्मान करने की लोगों से अपील की। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी (ramkrishna paramhans) को गदाधर चट्टोपाध्याय (बचपन का नाम ) के नाम से भी जाना जाता है | परमहंस एक उपाधि हैं यह उन्ही को मिलती हैं, जिनमे अपनी इन्द्रियों को वश में करने की शक्ति हो. जिनमे असीम ज्ञान हो,उनके अध्यात्म ज्ञान और शक्तियों से प्रभावित होकर उनके वेदांतिक गुरु तोतापुरी ने उन्हें ‘परमहंस’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
रामकृष्ण परमहंस का जन्म एवं शुरुआती जीवन - Birth and early life of Ramakrishna Paramahamsa
रामकृष्ण परमहंस (ramkrishna paramhans) 19वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध समाज सुधारक संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। उनका जन्म 18 फरवरी, 1836 को हुआ था लेकिन उनकी जयंती हर साल हिंदू लूनर कैलेंडर के अनुसार मनाई जाती है। कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन, शुक्ल पक्ष के महीने में द्वितीय तिथि को श्री रामकृष्ण की जयंती मनाई जाती है।इस वर्ष रामकृष्ण परमहंस (ramkrishna paramhans) के अनुयायी 4 मार्च, 2023 को उनकी 187 वीं जयंती मना रहे हैं।
संत रामकृष्ण परमहंस (ramkrishna paramhans) का जन्म बंगाल प्रांत स्थित कामारपुकुर ग्राम में हुआ था। उनके बचपन का नाम गदाधर था। पिताजी के नाम खुदीराम और माता का नाम चन्द्रा देवी था।उनके भक्तों के अनुसार रामकृष्ण के माता पिता को उनके जन्म से पहले ही अलौकिक घटनाओं और दृश्यों का अनुभव हुआ था। बिहार के गया में उनके पिता खुदीराम ने अपने एक सपने में देखा था की भगवान गदाधर ( विष्णु के अवतार ) ने उनसे कहा की वे स्वयं उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। उनकी माता चंद्रमणि देवी को भी ऐसा अनुभव हुआ था तथा उन्होंने शिव मंदिर में अपने गर्भ में रोशनी प्रवेश करते हुए देखा | संत रामकृष्ण परमहंस (ramkrishna paramhans) के जन्म के बाद उनकी बालसुलभ सरलता और मंत्रमुग्ध मुस्कान से हर कोई सम्मोहित हो जाता था।
सात साल की अल्पायु में ही गदाधर के पिता की मृत्यु हो गयी । ऐसी विषम परिस्थिति में पूरे परिवार का भरण-पोषण कठिन होता चला गया। आर्थिक कठिनाइयों के बाद भी बालक गदाधर का साहस कभी कम नहीं हुआ। गदाधर के बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय कलकत्ता ( अब कोलकाता) में एक पाठशाला के संचालक थे। वे गदाधर को अपने साथ कोलकाता ले गए। रामकृष्ण का अन्तर्मन अत्यंत निश्छल, सहज और विनयशील थे। संकीर्णताओं से वह बहुत दूर थे। अपने कार्यों में लगे रहते थे।
1855 में रामकृष्ण परमहंस के बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय को दक्षिणेश्वर काली मंदिर ( जो रानी रासमणि द्वारा बनवाया हुआ ) के मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में स्कैन 1556 में रामकुमार के मृत्यु के पश्चात रामकृष्ण को माँ काली मंदिर में पुरोहित के तौर पर नियुक्त किया गया।
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संत से परमहंस बनने तक की कहानी एवं उनके गुरु
रामकृष्ण काली माँ के एक प्रचंड भक्त थे, जोकि काली माँ से एक पुत्र की भांति जुड़ाव रखते थे ,जिस समय रामकृष्ण काली माँ के ध्यान में लीन हो जाते थे और उनके संपर्क में रहते, तो परमहंस नाचने लगते. गाने लगते और झूम- झूम कर अपने उत्साह को दिखाते, लेकिन ज्यों ही माँ काली से उनका संपर्क टूटता, तब वह एक बच्चे की तरह विलाप करते हुए धरती पर लोट पोट करने लगते थे | उनकी इस प्रचंड भक्ति की चर्चे सभी जगह सुनी जाने लगी थी | उनके बारे में सुनकर संत तोताराम , रामकृष्ण जी से मिलने आये और उन्होंने स्वयं रामकृष्ण जी (ramkrishna paramhans) को काली भक्ति में लीन देखा | तोताराम जी ने रामकृष्ण जी को समझाया, कि उनके अंदर असीम शक्तियां विद्यमान हैं, जो तब ही जागृत हो सकती हैं, जब वे अपने आप पर पूर्ण नियंत्रण के साथ -साथ अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखे, लेकिन रामकृष्ण जी काली माँ के प्रति अपने प्रेम को नियंत्रित करने में असमर्थ साबित हुए | तब तोताराम जी उन्हें कई तरह से सीखने की कोशिश करते , लेकिन वे उनकी एक ना सुनते. तब तोताराम जी ने रामकृष्ण जी (ramkrishna paramhans) से कहा, कि अब जब तुम माँ काली के संपर्क में जाओ , तुम एक तलवार के माध्यम से उनके तुकडे कर देना. तब रामकृष्ण (ramkrishna paramhans) ने पूछा मुझे तलवार कैसे मिलेगी ? तब तोताराम जी ने कहा – अगर तुम अपनी साधना से माँ काली को बना सकते हो, उनसे मिल सकते हो ,उनसे बाते कर सकते हो, उन्हें भोजन खिला सकते हो, तब तुम तलवार भी बना सकते हो. अगली बार तुम्हे यही करना होगा | अगले दिन जब रामकृष्ण जी ने माँ काली से संपर्क किया तब वे यह करने में असमर्थ हुए और वे पुनः अपने प्रेम साधना में लीन हो गए | जब वे साधना से बाहर आये, तब तोताराम जी ने उनसे कहा कि तुमने यह काम क्यों नहीं किया. तब फिर से उन्होंने कहा कि अगली बार जब भी तुम साधना में जाओगे, तब मैं तुम्हारे शरीर पर गहरा आघात करूँगा और उस रक्त से तुम तलवार बनाकर माँ काली पर वार करना. अगली बार जब रामकृष्ण जी (ramkrishna paramhans) साधना में लीन हुए, तब तोताराम जी ने रामकृष्ण जी के मस्तक पर गहरा आघात किया, जिससे उन्होंने तलवार बनाई और माँ काली पर वार किया. इस तरह संत तोताराम जी ने रामकृष्ण जी (ramkrishna paramhans) को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना सिखाया और तब से संत तोताराम जी रामकृष्ण जी के गुरु हो गए.
रामकृष्ण परमहंस एवं स्वामी विवेकानंद
रामकृष्ण परमहंस जी की वचनामृत की शैली वैसी ही थी जैसी कि भारत के प्राचीन ऋषि-मुनि, महावीर और बुद्ध की थी और जो परंपरा से भारतीय संतों के उपदेश की पद्धति रही है | दक्षिणेश्वर का मंदिर उद्यान उनके भक्तों एवं भ्रमणशील संन्यासियों का प्रिय आश्रयस्थान हो गया था | कुछ बड़े-बड़े विद्वान एवं प्रसिद्ध वैष्णव और तांत्रिक साधक जैसे- पं॰ नारायण शास्त्री, पं॰ पद्मलोचन तारकालकार, वैष्णवचरण और गौरीकांत तारकभूषण जैसे अनेको संत महात्मा आदि उनसे आध्यात्मिक ज्ञान की प्रेरणा प्राप्त करते रहे।इन्होने नरेंद्र नाम का एक साधारण बालक जो कि अध्यात्म से बहुत दूर तर्क में विश्वास रखने वाला था, को अध्यात्म का ज्ञान करवाया | ईश्वर की शक्ति से मिलान करवाया और उस नरेंद्र नाम के साधारण बालक से इसे स्वामी विवेकानंद बनाया. राष्ट्र को एक ऐसा पुत्र दिया, जिसने राष्ट्र को सीमा के परे विदेशों में भारतीय अध्यात्म का लोहा मनवाया दिलाया और अपने गुरु को गुरुभक्ति दी | विवेकानन्द उनके सबसे परम शिष्य थे ,जिन्होंने स्वामी रामकृष्ण परमहंस द्वारा दी गई शिक्षा से पूरे विश्व में भारत के विश्व गुरु होने का प्रमाण दिया |स्वामी विवेकानन्द ने भी मानव सेवा को सबसे बड़ा धर्म समझा और उन्होंने स्वामी रामकृष्ण के नाम से 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की और स्वामी जी के विचारों को देश और दुनिया में फैलाया।
रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु - Death of Ramakrishna Paramhansa
1885 ई. में परमहंस के गले में कैंसर हो गया था जिसके उपरांत उन्हें एक विशाल उपनगरीय विला में भेज दिया गया, जहां उनके युवा शिष्यों के दल ने दिन-रात उनकी देख-रेख और सेवा की और उन्होंने भविष्य के मठवासी भाईचारे की नींव रखी, जिसे आज रामकृष्ण मठ के नाम से जाना जाता है। 16 अगस्त, 1886 को, रामकृष्ण ने देवी माँ का नाम लेते हुए अपने भौतिक शरीर को त्याग कर अनंत काल में विलीन हो गये ।
रामकृष्ण परमहंस की अमृतवाणी एवं अनमोल वचन - ramakrishna paramahamsa Quotes
रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान आध्यात्मिक गुरु थे, जिन्होंने अपने जीवन के दौरान अनेक महान उपदेशों का प्रदर्शन किया। यहाँ उनकी कुछ मशहूर उक्तियां हैं:
रामकृष्ण परमहंस द्वारा दी गई महत्वपूर्ण शिक्षाएं:
रामकृष्ण परमहंस द्वारा दी जाने वाली शिक्षाएं हमेशा से लोगों के जीवन में एक निरंतर स्रोत रही हैं। उन्होंने अपने जीवन के दौरान कुछ मूल तत्वों को उजागर किया जो हमारे जीवन को समृद्ध बनाने में सहायक हो सकते हैं।
इसलिए, यहां कुछ रामकृष्ण परमहंस द्वारा दी गई महत्वपूर्ण शिक्षाएं हैं:
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